Monika garg

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खता क्या थी मेरी ?

गतांक से आगे...
  "ददू मेरी तो जान ही निकल गई जब मैंने रमा के मुंह से ये बात सुनी।"कनक की आत्मा पत्ते की तरह कांप रही थी वो पगली क्या जानती थी कि अब क्यों कांप रही है अब तो उस जगह पर थी वह जहां उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था ।पर वो उस समय में फंसकर रह गई थी ये ठाकुर साहब अच्छे से जानते थे।उनको पता था कि भटकती हुई आत्मा जिस परिस्थिति में अपना शरीर त्यागती है वह वो पल बार बार जीती है।कनक बोले जा रही थी ,"ददू जिसका डर था वहीं काम हो गया अगले ही दिन छोटी मां के चाचा का लड़का जो मुझ से 15साल बड़ा था आ पहुंचा हमारी हवेली में। बड़ा तो बड़ा साथ ही दो बच्चों का बाप भी था बीवी दूसरे बच्चे को जन्म देते हुए गुजर गयी थी। बच्चों को मां चाहिए थी इस लिए मां के पीछे पड़े थे कि कोई लड़की दिला दे घर सम्भाल ले। छोटी मां को मैं वैसे ही अच्छी नहीं लगती थी ऊपर से सैफ वाली बात होने से मां और चिढ़ गयी थी मां तो चाहती थी इस रिश्ते पर पिताजी की हामी की मोहर लगे पर अब तो पिता जी भी नहीं थे रोक टोक के लिए वैसे किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी छोटी मां से बहस करने की वो चीख चिल्ला कर अपना काम करा ही लेती थी।
      कालू नाम था छोटी मां के चाचा के लड़के का वैसे अगर रिश्ते से देखा जाए तो वो मेरे मामा लगते थे पर छोटी मां की आंखों पर तो पट्टी बंधी थी एक सौतेले पन की दूसरी मायके के मोह की मैं तो उनके लिए फालतू ही थी और अब तो सैफ नाम का बहाना भी मिल गया था ।अगर पिताजी आकर पूछेंगे तो कह देंगी ,"ओर क्या करती घर से भाग रही थी मुझे तो पांव में बेड़ी डालने का यही उपाय सूझा।यथा नाम तथा सूरत ददू पूरा उल्टा तवा था रात को भरपेट शराब पीता था दिन के समय भी उसके पास खड़े हो जाओ तो शराब की ऐसी दुर्गंध आती थी कि दिमाग सड़ जाता था।दो बच्चों के बाप के लिए छोटी मां मुझे छोटी सी जान को पल्ले बांध रही थी।
    जैसे ही वह आया छोटी मां की खुशी का पारावार नहीं रहा । मां उसकी आवभगत में लग गयी। मुझे सुनाई दे रहा था मां मुझे सुनाते हुए कालू से कह रही थी "भाई तू इसे ले जा मैं तो इस करमजली से बहुत दुखी हूं पैदा होते ही मां को खा गयी अब तब से मेरी छाती पर मूंग दल रही है ।नयन मटटका करती फिरती है अभी से खसम(पति) चाहिए।तू ब्याह कर लें जाएगा तो होश ठिकाने आ जाएंगे तूझे रोटी पानी की टहल मिट जाएगी"।कालू की तो राल टपकने लगी थी बोला ,"बहन तू कहे तो कल ही बिहा कर लूं।" ना भाई ऐसे तो लोगों को शक हो जाएगा ।दो चार दिन रुक जा । " कालू की तो मन की मुराद पूरी हो रही थी उसे थोड़े दिन रुकने में क्या जा रहा था।जैसे ही छोटी मां और कालू की बातें सुनी मेरा तो कलेजा ही फटने लगा क्या मांए ऐसी होती है ददू ?"कनक बिलख पड़ी ठाकुर महेन्द्र प्रताप उसे सांत्वना देते हुए बोले ,"बस कर बिटिया अब तेरे दुःख के दिन खत्म हो चुके है मैं तुझे न्याय दिलाऊंगा।"कनक आंखें पोंछ कर फिर बोली,"ददू अब तो सैफ ही मेरी आखिरी उम्मीद थी।मैं तड़प रही थी कि कोई उन तक संदेशा पहुंचा दे की उनकी कनक को कोई हर के ले जा रहा है।पर अब तो रमा का भी बाहर निकलना बंद सा ही था । मैंने सैफ के लिए एक पत्र लिखा ।बस इसी फ़िराक़ में थी कि किसी तरह यह सैफ तक पहुंच जाए।एक दिन मैं छत पर कपड़े सुखा रही थी पत्र मेरे पास ही था मैंने देखा सैफ गली से जा रहे थे मैंने पत्र नीचे फेंक दिया तभी अंदर से छोटी मां हवेली से बाहर आ गयीछोटी मां के हवेली से बाहर आते ही जैसे मेरी जान ही सूख गयी मुझे लगा अब मां मुझे गर्म चिमटे से मारें गी पर भगवान का शुक्र था कि जैसे ही छोटी मां ने देहली से बाहर पैर रखा रमा पीछे से आंगन में फिसल कर गिर पड़ी। रमा की चीख सुनकर छोटी मां उल्टे पांव अंदर दौड़ पड़ी शाय़द उन्होंने सैफ को पत्र उठाते हुए नहीं देखा । मां जोर से चिल्लाई,"कलमुंही !सारे कपड़े आज ही सुखाये गी क्या इधर मर ले आकर देख लड़की को क्या हो गया।नासपीटी यार से नयन मटटका कर रही होगी।" मैंने जो काम करना था कर दिया अब छोटी मां की गाली भी मुझ पर कोई असर नहीं कर रही थी।मेरे उन तक मेरा संदेसा पहुंच गया था मैं फटाफट नीचे आयी देखा रमा को हल्के से मोच आयी थी मैं सहारा देकर उसे अंदर ले गयी। थोड़ा तेल गर्म करके पैर पर मसल ही रही थी कि रमा धीरे से बोली,"क्यूं अपने जानू को संदेसा दे दिया क्या?"मैंने रमा की तरफ देखा तो रमा मंद मंद मुस्कुरा रही थी।" क्यों सही समय पर गिरी ना मैं"मैं समझ गयी थी कि रमा ने मुझे सैफ को पत्र फेंकते हुए देख लिया था।जब ही वह फटाफट नीचे आकर आंगन में फिसल गयी ताकि मां का ध्यान भटक जाए। भगवान ऐसी बहन सब को दे।

  उधर सैफ ने जब पत्र खोला तो उनकी आंखों में आंसू आ गये।लिखा था
मेरे प्रिय,
तुम आ जाओ मुझे बचा लो छोटी मां मुझे किसी और से बियाह रही है । क्या तुम अपनी जान को किसी ओर का होने दोगे।सैफ आप जल्दी आओ और मुझे इस नर्क से निकाल कर लें जाओ।अगर तुम ना आये तो मेरा मरा मुंह ही देखना। तुम्हारे इंतज़ार में
तुम्हारी सिर्फ तुम्हारी
कनक
पत्र पढ़ कर सैफ की बैचेनी बढ़ गई।उसे ये तो पता था मां मुझे तंग करती है पर वो इस हद तक जा सकती है ये नहीं पता था।सैफ ने सारी तैयारी कर ली मुझे इस नर्क से उठा ले जाने की
इतने में मंदिर का घंटा बज उठा ।कनक बोली,"ददू! समय हो गया चलती हूं।" "जा बेटी बस अब थोड़ी सी सब्र और कर लें सब ठीक हो जाएगा।"यह कहकर ठाकुर महेन्द्र प्रताप अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में सोचते जा रहे थे कि किसी के घर का क्या पता चलता है ।गनपत के क्या ठाठ थे और उस की पत्नी भी बाहर वालों से कैसे झुक झुक कर प्रणाम करती थी ।ऐसा व्यवहार करती थी जैसे उस जैसी भली लुगाई ही कोई ना हो।सच कहा है जब किसी को बरतो परखो तभी पता चलता है। ठाकुर साहब अपनी हवेली पहुंच गए।बस कल की तरह कुल्ला करके नाश्ता कर के सो ही रहे थे तो भगवान सिंह आ गया,"पिताजी थेह रुको। कोई काम है थाहरे सै।(क्रमशः)


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9 Comments

Sandhya Prakash

22-Mar-2022 02:13 PM

Khoobsurat... Bhavukata se bhari kahani

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Arman

01-Mar-2022 11:39 AM

लाजवाब

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Monika garg

01-Mar-2022 06:46 PM

धन्यवाद

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Archita vndna

23-Feb-2022 12:56 PM

बहुत खूब

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Monika garg

23-Feb-2022 01:05 PM

धन्यवाद

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